कीर्तेश्वर महादेव गुफा का रहस्य
माफ़ी चाहता हूँ दोस्तों, पूरा एक साल हो गया और मैंने आप लोगो को कोई नयी जगह नहीं बताई। खैर देर आये दुरुस्त आये, इस बार फिरसे में आपको एक बहोत ही खूबसूरत, प्राचीन और रहस्यों से भरपूर एक खोयी हुयी दुनिया में ले चलता हूँ जहा जाकर आप निश्चित ही प्रकृति माँ के अनुपम सौंदर्य और प्राचीन धरोहर को देखकर अभिभूत हो जायेंगे।
दोस्तों कुछ साल पहले वनों में स्वच्छंद विचरण करते हुए मुझे कुछ आदिवासी मिले, गर्मी बहोत ज़्यादा होने से और उनमे से एक को असहज महसूस होते देख मैंने उनको अपने पास से इलेक्ट्रोल का घोल पिलाया। इलेक्ट्रोल पी कर कुछ अच्छा महसूस करके हमारी बातें आगे बढ़ी। मेरे बारे में जानकार उन्होंने मुझे एक जगह जाने का सुझाव दिया जो की अति प्राचीन रहस्यमयी और घने जंगलों के बिच बसी है।
अपनी बात को जारी रखते हुए उसने बताया, की पास के रामकुल्ला गाँव के सुदूर घने जंगल में एक अति प्राचीन गुफा है, दन्त कथा के अनुसार प्राचीन काल में अर्जुन की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान् शिव कीर्तेश्वर का रूप धारण करके पश्चिम सिक्किम में प्रगट हुए थे (वर्तमान में जहा कीर्तेश्वर मंदिर है) उसी वक़्त भगवन शिव की परछाई यहाँ पड़ी थी एवं विशाल पर्वत का सीना चिर कर शिवलिंग प्रगट हुए थे, इसीलिए इस जगह को कीर्तेश्वर महादेव गुफा का नाम दिया गया। लोग ये भी कहते हैं की प्राचीन समय में यहाँ उस शिव लिंग की पहरेदार के लिए एक बहोत ही भयंकर शेषनाग रहता था जिसके चलने के निशानों पर आज गुफा के सामने नदी बहती है।
उस आदिवासी के द्वारा दी गई जानकारी मेरे अंदर के खोजी को जगाने के लिए काफी थी, समय की कमी के चलते मैं बाद में आकर उस जगह को देखने का वादा कर अपने गंतव्य की ओर चल दिया।
समय बीतता गया और अपने आलसी स्वाभाव की वजह से मैं अगले १ महीने तक उस जगह नहीं जा पाया, फिर अचानक एक दिन मैंने उस जगह पर जाने का मन बना कर साथ में इलेक्ट्रोल के बहोत सारे पैकेट रखकर उस ओर निकल गया। समीप के गाँव रावत पलासिया पर पहुंच कर मैंने सारे पैकेट गाँव के सरपंच को दे दिए जो की भीषण गर्मी में लू लगने पर ग्रामवासियों के काम आते।
इसके पश्चात मैं शिव के प्राकृतिक वास की और चल दिया। घने जंगलों में से होते हुए वनमार्ग पर मैं यही सोचता सोचता बढ़ता जा रहा था की ना जाने कितना खूबसूरत और सौंदर्य से परिपूर्ण वो नज़ारा होगा जहाँ बीते समय की कहानी बयाँ करता है एक पर्वत और उसके अंदर गहरी गुफा होगी। मैं यही सब सोचते सोचते आगे चलता जा रहा था और अचानक खामोश जंगल में एकदम से जान आ गई और सूखे पत्तों पर सैकड़ो कदमताल की आवाज़ से पुरे माहौल मैं सनसनी फ़ैल गयी। ध्यान से देखने पर ज्ञात हुआ की कुछ दुरी पर हिरणों का झुण्ड विचरण कर रहा था जो की मेरे आने से घबरा कर दौड़ पड़ा। इसे देखकर मुझे उस आदिवासी की याद आयी जिसने कहा था जंगल में जंगली जानवर बहुतायत में हैं अतः ध्यान से जाएँ।
खैर जान में जान आयी और मैं आगे की तरफ बढ़ा। कुछ २-३ किलोमीटर चलने के बाद मैं उस भव्य और अलौकिक संसार में प्रवेश कर गया। निश्चित ही उस जगह पर आज भी किसी दैवीय शक्ति का वास था। एक तरफ जहा मैं घने जंगलों को पार करके आया था, दूसरी तरफ जंगलो के बीचो-बिच एक भव्य पहाड़ और उसके सामने सांप के आकर में बहती चौड़ी नदी का पाट और बहुत से फूटबाल के मैदानों के आकर के बराबर फैला हुआ खुला मैदान और इन सबके बिच पहाड़ को चीरती हुई कीर्तेश्वर महादेव की गहरी गुफा बहुत सारे रहस्यों का आगाज़ कर रही थी।
चारो और प्राचीन शैलखंडो और शैल चित्रों की आकृतियां विद्यमान थी, नदी के किनारे चलते चलते मैं उस प्राचीन पर्वत के समीप आ गया, जहाँ लगभग ५० फ़ीट की ऊंचाई पर वह गुफा स्थित थी। स्थानीय लोगों ने ऊपर चढ़ने के लिए सीढिया बनायीं हुए थी जिसके सहारे मैं उस गुफा के मुहाने तक पहुंच गया।
देखने में अति प्राचीन, गहरी और अन्धकार से भरी हुयी यह गुफा निश्चित ही मानव निर्मित नहीं थी और इतना साहस किसमे जो पहाड़ को खोदकर इतनी गहरी गुफा बना दे ??? गुफा का दरवाज़ा करीब ६ फ़ीट और उसका रास्ता करीब ३ फ़ीट ऊँचा ही था, किसी अप्रत्रिम घटना और अज्ञात शक्तियों के डर से मैं अंदर प्रवेश करने से झिझक रहा था और क्यों ना हो? आखिर ऐसी जगह कई सारे खतरनाक कीटों और रेंगने वाले जीवों का घर जो बन जाती है।
खैर नियति पे विश्वास करके और अपने मोबाइल का टोर्च जला कर मैं अंदर घुसा, मार्ग संकरा और छोटा होने के कारन मैं घुटनों के बल रेंग कर चल रहा था, कुछ दूर अंदर जाने के बाद मुझे घने अँधेरे ने घेर लिया, पीछे देखने पर गुफा के द्वार से एक प्रकाश पुंज सा आ रहा था जिससे मेरी हिम्मत बंधी और में आगे बढ़ता गया। आगे बढ़ते हुए अचानक मुझपर आसमानी हमला हुआ, कर्कश चीत्कार करते हुए बहुत सरे चमगादड़ मेरे सर के ऊपर से उड़ने लगे जो की इसी गुफा के रहवासी थे। चूँकि जगह बहुत काम थी, इसलिए में पूरी तरह से जमीन पर लेट गया और उन चमगादड़ों का वहां से चले जाने का इंतज़ार करने लगा। जब सभी चमगादड़ उड़ गए या किसी सुरक्षित स्थान पर चले गए तब में फिरसे उठा और घुटनो के बल आगे बढ़ा। गुफा के द्वार से करीब ३०-४० फ़ीट अंदर आ जाने के बाद मैं ऐसे स्थान पे पंहुचा जहा में सीधा खड़ा हो सकता था, चारो तरह गुफा की कंदराएँ, जर जर हो चुकी चट्टानें और ऊपर की तरफ असंख्य चमगादड़ मुझे घूर-घूर के देखते हुए मुझे डरा कर वापस बाहर जाने के लिए विवश कर रहे थे परन्तु शिव को पाने की चाह और निर्भय होकर अपनी खोज पूरी करने की लालसा मुझे वहां रोके रही।
और तभी मेरी नज़र मेरे बाई और पड़ी जहाँ एक छोटे से कक्ष में साक्षात् शिव लिंग अपनी प्रकृति में विराजमान थे। मन किया की पूछ लूँ "हे भोले इतने बड़े बड़े मंदिरों को छोड़ कर तुम क्यों इन गुफाओं में निवास करते हो?" दिल से जवाब आया की शिव तो कण-कण में विराजमान है पर उसके स्थापना का स्थान तो उस ढोंग-दिखावे और लोभ-लालच की दुनिया से परे शांत, शीतल, प्राकृतिक और समान अधिकार से जीने वाले वन्य जीवों के बिच इस निश्छल वन में ही होना चाहिए। बस फिर शिव लिंग के दर्शन किये और अपने एवं अपने परिवार के कल्याण की कामना कर मैं वहां से निकल गया। गुफा के द्वार से जब चारो और देखा तो मुझे इस जगह की भव्यता का अंदाज़ा हुआ। उसकी प्राकृतिक खूबसूरती ने मेरा मन मोह लिया।
इस बात को काफी समय बीत जाने पर और लोगों को इस जगह के बारे में पता चल जाने पर वर्ष 2018 में मैंने यहाँ अपने समूह के साथ ट्रैकिंग की और सभी को इसकी खूबसूरती दिखाई। उसी समय की कुछ फोटोज में आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ। शायद आपको पसंद आये। जो लोग इस जगह को देखना चाहते हैं वो हमारे ग्रुप "https://www.facebook.com/insearchoflostpugmarks/" के पेज को लिखे करें, फरवरी माह में एक ट्रेक हम इस जगह की भी करेंगे।