Thursday, 30 November 2017

My Spiritual Exploration of an Ancient Hidden Cave

दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसी जगह ले चल रहा हूँ जो की अपने आप में अद्भुत और प्राचीन है। यह जगह ना जाने कितने लाखो वर्षो से इसी तरह नीरव, खामोश और न जाने कितने ही रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए है। मैं बात कर रहा हूँ एक रहस्यमयी गुफा की जो इंदौर से लगभग ४५ किलोमीटर दूर घने वन में प्रकृति की गोद में समायी हुई है।

वैसे तो मैं एकांत और खूबसूरत स्थानों की खोज में सुदूर एवं घने वनों में एकांकी यात्रा करता रहता हूँ और कई बार कुछ ऐसे दुर्लभ दृश्यों का साक्षी बनता हूँ जो की शब्दों में बयां नहीं किये जा सकते और ना ही आम आदमी का उससे कोई सरोकार होता है। ये मेरा स्वाभाव है की में एकांकी घूमते हुए आदिवासी लोगो से मिलता हुआ उस क्षेत्र की जानकारी लेता रहता हूँ। बात अगर वनों की हो तो आदिवासियों से ज़्यादा ज्ञान किसी को नहीं होता और मैं इसका भरपूर लाभ उठाता हूँ। इसी सिलसिले में कुछ दिन पहले मैं रात्रि के समय इंदौर से ४५ किमी दूर एक स्थान पर गया था, वहां पर मेरी मुलाक़ात कुछ आदिवासी भाइयों से हुई जिन्होंने मुझे जंगल के अंदर एक अतिप्राचीन गुफा के बारे में बताया जो की एक पहाड़ की तली में निचे खाई में बानी हुए थी और जहा पर शिव का वास था। उनके वर्णन के अनुसार वह जगह मेरे लिए बहोत रोमांचकारी थी परन्तु रात्रि का समय होने से और मेरे पास टॉर्च इत्यादि साधन न होने से और जंगल में बड़े जंगली जानवरों की उपस्थिति ज्ञात होने से मैं उस रात वहां नहीं गया।

जिज्ञासा की भावना हावी होने से और एक अज्ञात स्थान को जानने की उत्सुकता के चलते में उस रात सो नहीं पाया और अगले दिन मैं सुबह से ही उस स्थान की खोज में निकल पड़ा। निकटतम आदिवासी ग्राम में पहुँचने पर मैंने वहां के स्थानीय लोगो से उस जगह का रास्ता पूछा और निकल पड़ा अपनी खोज को पूरा करने।

घने वन और कच्ची पगडण्डी पर में आगे बढ़ता गया, पहाड़ी के मुहाने पर पहुँच कर निचे खाई को एक संकरा रास्ता जा रहा था, वही मेरा मार्ग था। रास्ता बेहद उबड़-खाबड़ और संकरा था। भुरभरे पत्थर जूतों को पकड़ बनाने नहीं दे रहे थे। ज़रा सा पैर फिसला और आप सीधे खाई में। कई जगह मुझे सुरक्षित आगे बढ़ने के लिए चौपाया भी बनना पड़ा। पतझड़ का मौसम है इसलिए जंगल हर जगह से पिले रंग का दिख रहा था परन्तु आगे की जगह पूरी हरियाली से भरी हुए प्रतीत हो रही थी मानो किसी रेगिस्तान में एक नख्लिस्तान बना हो।

एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ खाई और बिच में एक संकरा रास्ता और उस रास्ते पर चलते हुए धीरे धीरे मैं एक अलौकिक संसार में प्रवेश कर गया। चरों और हरियाली, खुशबू से सराबोर माहौल, लाल नीले पिले रंग के खूबसूरत फूल और पहाड़ के ऊपर से बहता एक छोटा सा झरना और झरने के पीछे एक अतिप्राचीन गुफा का दर्शन मुझे निश्चित ही किसी पारलौकिक स्वप्न लोक में ले आया था। ऐसा अद्भुत नज़ारा जो सिर्फ पंचमढ़ी या ऐसे ही किसी दूसरे स्थलों पर देखने को मिलता है उसे यहाँ देखकर मुझे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था।

प्रकृति सबसे सूंदर कृतियां बनाती है यह मैंने पहले भी देखा और उस दिन भी। अचंभित करने वाली संरचना, तरह तरह की वनस्पति एवं जड़ीबूटियां, ऊँचे ऊँचे वृक्ष, लम्बी लम्बी लताएं मेरा मन मोह रही थी। गुफा मार्ग पर निरंतर पानी की धरा बह रही थी जो निश्चित ही वन्य जीवों की कंठ तृप्ति का साधन होगी| गुफा के अंदर प्रवेश करते हुए में समझ नहीं पा रहा था की भय और जिज्ञासा में से कौन ज़्यादा मुझपर हावी है। ऐसी गुफाओं में सर्प, बिच्छू, चमगादड़, मधुमखियां और कई प्रकार के जीवों का वास होता है अतः मैं सावधानी पूर्वक आगे बढ़ा| गुफा में घुप अँधेरा था इसलिए मैंने अपने मोबाइल की टॉर्च जला ली|

जैसे ही आगे बढ़ा, कर्कश स्वर करते हुए मेरे सर के ऊपर से चमगादड़ उड़ने लगे जो शायद उस गुफा के ही निवासी थे| खुद को सँभालते हुए में आगे बढ़ा और बायीं तरफ देखा तो एक झरोखे से कोई अज्ञात प्रजाति का जीव मुझे घर रहा था, मैंने उसपर टॉर्च से रौशनी डाली तो वो मेरे मन का भ्रम निकला। फिर में आगे की ओर बढ़ा तो एक अलौकिक दृश्य मेरे सामने आया, गुफा के अंतिम छोर पर एक स्वयंभू शिवलिंग बना हुआ था और उसपर प्राकृतिक रूप से जल धरा का सतत अभिषेक हो रहा था। मैं धन्य हो गया जो शिव ने मुझे अपने दर्शन दे दिए थे। उस अलौकिक स्थान पर कुछ समय बिताने और कुछ छायाचित्र लेने के उपरान्त मैं अपने वापस अपनी दुनिया की ओर आ गया।

इस पूरी यात्रा की कुछ तस्वीरें हैं जो की मैं यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ :-












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