सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए से अनसुलझे-अनमने से जंगल
दोस्तों,
ये शायद मेरी ज़िन्दगी का अब तक का सबसे यादगार सफर होगा। हम में से अधिकतर लोग किसी घने राष्ट्रीय उद्यान के जंगल में या बाघों के प्राकृतिक निवास में रहने के सपने तो देखते हैं पर हमे समझ नहीं आता की आखिर हम किस जगह जाएँ जहाँ खुले आसमान के निचे घने जंगलों में एक छोटा सा परिसर हो जिसमे घांस और बांस से बने घरोंदे हो और पुराने ज़माने के कवेलू वाले कमरों की खिड़कियों में से झाँकने पर पक्षियों की अटखेलियाँ और वन्यजीवों का स्वच्छंद विचरण मन मोह ले। कुछ ऐसी ही जगह मैंने अपने लिए कई सालों से खोज राखी थी पर वहां जाने का मौका मुझे पिछले हफ्ते ही मिला।
मैं बात कर रहा हूँ सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के कोर एरिया "चूरना" की। जी हाँ ये वही सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व है जिसकी कविता हम बचपन में बाल-भारती में पढ़ते थे। "सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए से अनसुलझे-अनमने से जंगल। सतपुड़ा अपने आप में प्राकृतिक रूप से बहोत ही समृद्ध और सौंदर्य से परिपूर्ण है और "चूरना" सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के कोर एरिया में स्थित है। किसी भी टाइगर रिज़र्व का कोर एरिया वह एरिया होता है जिसमे वन्यजीवों की संख्या भरपूर होती है और वन्यजीवों को उनके प्राकृतवास में देखा जा सकता है। वन्यजीवों की सुरक्षा व एकांतता को देखते हुए कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी आ चूका है जिसमे कोर एरिया का केवल २०% हिस्सा ही पर्यटन के लिया खोला जा सकता है। दुर्भाग्य से चूरना भी उसी कोर एरिया के अंतर्गत आता है और ऐसा माना जा रहा है की कुछ ही महीनो में चूरना को भी पर्यटन के लिए बंद कर दिया जायेगा और पर्यटक वहां रात्रि विश्राम नहीं कर पाएंगे। खैर हमारी किस्मत अच्छी थी जो हमने समय रहते यहाँ जाने और रहने का प्रोग्राम बना लिया।
हमारी यात्रा सुबह के ५ बजे इंदौर से शुरू हुई (चूरना में कैसे जाएँ, कहा रुकें, बुकिंग कैसे करवाएं, रहने और घूमने का खर्चा, परमिट इत्यादि की जानकारी इस ब्लॉग के अंत में दी गई है)। हम कुल 6 लोग थे, मैं, अंकुर, पराग, नेहा, विनोद और पूजा। घूमते-फिरते रास्तों के नज़ारे देखते हुए हम लोग करीब २ बजे चूरना के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। चूरना के प्रवेश द्वार से वन विश्राम गृह की दुरी करीब ३५ किलोमीटर है। यह दुरी आपको अपनी खुदकी गाडी से तय करनी होती है और पूरा रास्ता सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के घने जंगलों में से होकर गुज़रता है। यह ३५ किलोमीटर की यात्रा अपने आप में ही टाइगर सफारी की तरह होती है और आपको रास्ते में लगभग सभी जंगली जानवर देखने को मिल जाते हैं या फिर उनके निशान मिल जाते हैं। प्रवेश द्वार से अंदर आते ही अपने वाहन से उतरना या फिर बिच रास्ते में रोक कर वन्यजीवों को देखने की कोशिश करना दण्डनीय अपराध है और जंगल घूमने के लिए वन विश्राम गृह पहुंच कर अलग से जिप्सी सफारी की जा सकती है।
मंजिल से पहले राहों का मज़ा भी ले लिया जाये
सफर में फलों का स्वाद कुछ बढ़ सा जाता है
एक पोज़ हो जाये
करीब १ घंटे में हम चूरना पहुंचे, आशा के अनुरूप पहली नज़र में ही चूरना ने हमारा मन मोह लिया। चारो तरफ हरियाली, प्राकृतिक रूप से बने हुए कुटीर, ब्रिटिश काल का मनमोहक वन विश्राम गृह, खूबसूरत मैदान, झूले, ऊँचे-ऊँचे वृक्ष, चिड़ियों की चहचहाहट और बाड़ की दूसरी तरफ उन्मुक्त घूमते हुए हिरणों का झुण्ड हमे यकीन दिला रहा था की ये यात्रा हमारी अब तक की सबसे सुखद यात्रा होने वाली थी। बहरहाल हम लोग फटाफट अपने रूम में पहुंचे और थोड़ा फ्रेश होने के बाद आसपास का वातावरण देखने लगे। हमारी सारी शाम आसपास विचरते हुए जानवरों को देखने और दूर कही से शाकाहारी जानवरों की चेतावनी वाली पुकारों को सुनते हुए बीती। हम बस यही सोच रहे थे काश हमे विश्राम गृह से बाहर निकलने की अनुमति मिल जाये और हम चेतावनी वाली पुकारो की तरफ जाकर आपेक्षित शिकारी जानवर (शायद बाघ) को देख लें। खैर हमारी सारी रात अगले दिन सुबह जिप्सी सफारी पर जाने के रोमांच में बीती।
सतपुरा टाइगर रिज़र्व के अंदर चूरना रेस्ट हाउस पहुँचने का मार्ग
चूरना के मार्ग पर मिलने वाली नदी जिससे जंगली जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं
इन्ही राहों से शेर और शेर दिल गुज़रते हैं
हमारी ओर कोतुहल से देखती एक नीलगाय
पानी के तालाब के पास प्यास बुझाने आया हुआ नर सांभर हिरन
इस नदी में गर्मियों में बाघ तरोताज़ा होने के लिए आते हैं
चूरना फारेस्ट रेस्ट हाउस का खूबसूरत परिसर
चूरना फारेस्ट रेस्ट हाउस का खूबसूरत परिसर
चूरना फारेस्ट रेस्ट हाउस का खूबसूरत परिसर
चूरना फारेस्ट रेस्ट हाउस का खूबसूरत परिसर
भालू से मुलाकात : सुबह ठीक ५:३० बजे मुर्गे ने बांग दी। मैं अपने रूम से बहार आया तो मेरे साथी पहले से ही चाय की जुगाड़ में किचन के पास खड़े थे। धुंद से भरी अल्हड सुबह चाय की चुस्की लेने के बाद ठीक ६:३० पर हम खुली जिप्सी से जंगल की ओर निकल पड़े। मन में विश्वास था की चूरना जैसी जगह पर जंगली जानवर तो बहोत दिखेंगे और हुआ भी वही। कुछ दूर निकलने पर ही अचानक सड़क के किनारे हमे काले फर की बड़ी सी बॉल जैसी आकृति दिखी, हमारा स्वागत सतपुड़ा में मिलने वाले काले रंग के रीछ (भालू) ने किया। अपने खाने में मगन भालू ने जैसे ही हमे देखा, वो दौड़ कर जंगल में कही गुम हो गया।
काले फार की बॉल जैसा भालू जंगल की ओर भागते हुए
सुबह की जिप्सी सफारी
भारतीय गौर का झुण्ड
नर सांभर हिरन
नर सांभर हिरन
बाघ का पंजा : खुली जिप्सी में घूमते वक़्त ड्राइवर की नज़र मार्ग पर किसी वन्य प्राणी के चिन्ह पर पड़ी। ध्यान से देखने पर समझ आया की ये तो बहोत ही भीमकाय बाघ के पंजों के निशान हैं जो की कुछ ही समय पहले के हैं। जंगल में बाघ की मौजूदगी का बोध होना अपने आप में अलग ही एहसास है। रोंगटे खड़े हो जाते हैं ये सोच कर की खुली जिप्सी में अगर बाघ सामने आ जाये तो हम क्या करेंगे? खैर जो करना हो वो ही करेगा। हमने तुरंत उन पंजों के निशानों का पीछा करना शुरू कर दिया। लगभग ३ किलोमीटर तक उन पंजों का पीछा करने के बाद पंजों के निशान हमें चूरना रेंज की सीमा तक ले गए एवं आगे मढ़ई रेंज की ओर जाने लगे। चूँकि हमारा परमिट चूरना रेंज का ही था और हम किसी और रेंज में प्रवेश नहीं कर सकते थे अतः हम निराश मन से वापस मुड़ गए और खुदको कोसने लगे काश हम थोड़ा और जल्दी आ जाते तो बाघ हमे दिख सकता था।
बड़े नर बाघ के पंजे
बाघ इस ओर आगे मढ़ई की तरफ चला गया
जंगल का कानून : या तो भाग कर जान बचाओ या ताकतवर का निवाला बन जाओ, यही है जंगल का कानून। बाघ के पंजों का पीछा छोड़ निराश मन से वापस आते हुए अचानक ही हमारा गाइड चिल्लाया "गाडी रोको सामने तेंदुआ है"| डर और रोमांच की लहर पुरे शरीर में दौड़ गई जब कुछ ही दुरी पर चट्टानों के बिच हमे एक तेंदुआ दिखा। बहोत ही खूबसूरत और चमकदार फर वाली इस बड़ी बिल्ली को देखना बाघ को देखने से भी ज़्यादा मुश्किल होता है और मज़े की बात ये की अपने स्वाभाव के विपरीत वो तेंदुआ हमे देख कर कहीं भागा नहीं और आराम से चट्टान पे बैठ गया। में उसे जी भर के देख ही रहा था की अचानक मेरे मित्र पराग अमोलिक ने मुझे बताया की वहा एक और तेंदुआ है और इतने में दूसरे मित्र विनोद की पत्नी पूजा बोली अरे देखो-देखो तेंदुआ के पास कोई शिकार है और वो उसे खा रहा है। हमे अपनी आँखों पे भरोसा ही नहीं हुआ, एकाकी जीवन बिताने वाले और दुर्लभ ही दिखने वाला तेंदुआ और वो भी एक नहीं दो-दो और ऊपर से शिकार को खाते हुए, हे ईश्वर ये नज़ारा तो बहोत ही दुर्लभ था और अगर हमारे में से किसी के पास भी कैमरा होता तो वो वीडियो क्लिप अनमोल होती जैसी डिस्कवरी और एनिमल प्लेनेट में फिल्मायी जाती है। हम पूरी तरह से शांत बैठे थे और तेंदुए हमारी मौजूदगी से बेअसर थे। ध्यान से देखने पर पता चला की वो एक चीतल हिरन को खा रहे थे जिसकी किस्मत में उसका अंत लिखा था। जंगल में कमज़ोर जानवर ताकतवर जानवरों का निवाला बनते हैं और इसी तरह से प्रकृति का संतुलन बना रहता है। हमारे और तेंदुए में कितनी दुरी थी ये आप इस बात से पता लगा सकते हैं की उसके पैने दांत जब हिरन की हड्डियों को चबा रहे थे तो उसकी आवाज़ हमारे कानो में साफ़ सुनाई दे रही थी। आगे बढ़ने से पहले लगभग डेढ़ घंटे तक हम वहां रुके और बारी-बारी से दोनों तेंदुओं को शिकार खाते हुए देखा। किस्मत पे भरोसा नहीं हो रहा था हमने २ तेंदुए देखे वो भी लगभग डेढ़ घंटे तक।
दो तेंदुए शिकार का मज़ा लेते हुए
दो तेंदुए शिकार का मज़ा लेते हुए
शिकार खाने के बाद आराम करते हुए
मालाबार जायंट स्क्वेरेल से मुलकात : गिलहरियाँ तो मुझे बचपन से ही पसंद थी, और जब बात हो मालाबार जायंट स्क्वेरेल की तो उसकी तो बात ही कुछ और है। चमकीला नारंगी, भूरा और काले रंग का फर और उसपे बड़ी बड़ी खूबसूरत आँखे और कान उठा कर किसी शरारती बच्चे की तरह फुदक-फुदक कर चलना हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। सुबह की सफारी से आने के बाद हम लोग आम के पेड़ के निचे बैठे हुए थे और तभी ना जाने कहा से २ प्यारी सी गिलहरियां फुदकती हुई हमारे पास आ गई। पहले तो हमे भरोसा ही नहीं हुआ की इतना शर्मीला जीव हमारे इतने पास कैसे आ गया पर फिर समझ आया शायद वन विभाग के कर्मचारियों से घुल मिल कर इनका व्यव्हार ऐसा हो गया होगा। बहरहाल हमने इनके साथ खूब सरे फोटोज लिए और इनकी अटखेलियों का खूब आनंद लिया।
श्रीमान मालाबार जायंट स्क्विरेल्ल से गहन मुद्दे पे चर्चा करते हुए
बहोत ही प्यारी है
चमकीला फर
आप यहाँ आये किसलिए?
साढ़े छः करोड़ साल पुराने प्रागेतिहासिक जीव : वक़्त हो चला था दोपहर की सफारी का। हमारे जिप्सी ड्राइवर ने बताया की वो हमे पुरानी गिट्टी खदान दिखाने ले जायेगा जहा पर गांव को विस्थापित करने से पहले गिट्टी की खुदाई की जाती थी और अब सिर्फ बड़े बड़े गड्ढे हैं और उसमे पानी के तालाब बन गए है और अक्सर बाघ गर्मी से निजात पाने के लिए वहाँ आता है। फरवरी का माह था तो गर्मी तो लाजमी थी इसलिए हम भी टोपी लगा कर सफारी पर निकल गए। तालाब के पास पहुंच कर हर कोई बाज की निगाहों से तालाब को देख रहा था। तालाब के आस-पास काफी सारे सांभर हिरन बैठे हुए थे पर कोई भी तालाब के अंदर नहीं जा रहा था। काफी देर तक आँखे गड़ाने के बावजूद हमे कुछ भी नहीं दिख रहा था। हमारी बेचैनी को भाप कर जिप्सी ड्राइवर जिसे हम काका बोलने लगे थे वो बोलै "साहब वो देखिये उस पेड़ के निचे मगरमच्छ बैठा हुआ है, बड़ा ही आलसी और निकम्मा है इतनी धुप में भी बिना हिले पड़ा हुआ है।" उनका इतना बोलना हुआ की हम सब भौचक्के से उस मगर को देखने लगे और सोचने लगे की हमे इतना बड़ा मगरमच्छ सामने बैठे हुए दिखा ही नहीं !!! अगर हम जंगल में कभी पैदल चल रहे होते और इसी तरह मगर अपने वातावरण में घुल-मिल के बैठा होता तो हमे दीखता ही नहीं और हो सकता है हिंदी फिल्मों की तरह हमारा भी शिकार हो जाता। बाप रे बहोत ही बुरा ख्याल था। जंगल खतरनाक होते है और हमे उनका सम्मान करना चाहिए और कभी भी अनजान जंगल में बिना किसी मार्गदर्शक के नहीं जाना चाहिए।
मगरमच्छ धुप सेकते हुए
हमे देख कर मगर इस कुंड में अंदर छुप गया
स्याह काली अँधेरी रात और वो अज्ञात : दिन भर घूमने के बाद वक़्त था आराम करने का। हम सोने ही गए थे की अचानक जंगल जाग उठा। हम सभी लोग बाहर आकर देखने लगे की जंगल में हो क्या रहा है। बाहर निकलते ही हमने देखा की सारा जंगल स्याह काले अँधेरे में डूबा हुआ था। किसी ने बताया की आज अमावस्या की रात है। ये सुनते ही मुझे गाँव के लोगो की बात याद आई की अमावस्या की रात गाँव के लोग जल्दी सो जाते हैं और रात में बाहर नहीं निकलते हैं क्योकि उनका मानना होता है की जंगल में काली शक्तियों का वास होता है और अमावस्या की रात वो चरम पर होती है। जंगल से कुछ अज्ञात और रहस्य्मयी आवाज़ें आने से और अजीब सी बेचैनी होने से हमने वापस रूम में जाने का फैसला किया। वैसे भी हमारा रूम जंगल के बिलकुल करीब था और जंगल और हमारे बिच सिर्फ ४ फ़ीट की तार की बाड़ थी।
चूरना रेस्ट हाउस परिसर
हमारे और जंगल के घने अँधेरे के दरमियान सिर्फ वो चिराग है जो हमे यहाँ और उसे वहाँ रोके हुए है
चिरागों की रौशनी जरा मद्धम ही रहने दो, अँधेरा सितारों की जगमगाहट दिखाता है।
चाँद की गैरमौजूदगी ने लाखों तारों को टिमटिमाने का मौका दे दिया
रगो में रोमांच की लहर : हमारे तीसरे और अंतिम दिन हम सुबह जल्दी उठ गए क्योकि इंदौर जल्दी निकलना था। बाहर खड़े होकर हम बात कर ही रहे थे की अचानक सांभर हिरन की चीत्कार सुनी। मैं तुरंत समझ गया हो न हो सांभर ने कोई शिकारी जानवर देखा है। हम सब तुरंत दौड़ कर चीख की दिशा में दौड़ पड़े और फारेस्ट रेस्ट हाउस की बाउंड्री के वहां कटीले तार्रों के पास खड़े हो गए। हम सांभर हिरन को देखने लगे और वो जिस दिशा में देख कर चीख रहे थे उस तरफ कुछ देर ध्यान से देखने के बाद हमारी आँखे फटी रह गयी। रेस्ट हाउस से करीब 100 मीटर की दुरी पर एक हष्ट-पुष्ट नर बाघ रोड के किनारे जंगल की तरफ चल रहा था। खून जम सा गया जब देखा की रेस्ट हाउस के इतने नज़दीक एक भीमकाय बाघ घूम रहा है। मज़े की बात ये थी की २ दिन जंगल घूमने के बावजूद बाघ ना दिखने पर हम जितना निराश हो रहे थे आखरी दिन बाघ खुद चलकर हमे अपनी झलक दिखने आया। वाह-वाह चूरना आपको कभी निराश नहीं करता बस आप जंगल के इशारे ठीक से समझ सकें तो।
इसी दरवाज़े से बाहर बाघ दिखा हमे
चूरना रेस्ट हाउस परिसर
चीतल का झुण्ड
चीतल का झुण्ड
चूरना का खूबसूरत परिसर
चूरना का खूबसूरत परिसर
एक और तोहफा : एक ट्रिप में तेंदुए, बाघ, मगरमच्छ, भालू, जायंट स्क्वेरेल और लगभग सभी शाकाहारी जीवों को देख लेने वाले हम बहोत ही गिने चुने भाग्यशाली लोगों में से थे। रेस्ट हाउस से इंदौर को रवाना होते हुए हम सोच रहे थे की ये ट्रिप कितनी ज़्यादा सफल रही। जितना सोचा नहीं था उससे ज़्यादा दिया हमे चूरना ने। सोचते-सोचते हम चूरना के निकास द्वार से मात्र 50 मीटर दूर ही थे की हमे जंगल के एक और दुर्लभ और आकर्षक जीव के दर्शन हो गए। ये था जंगली कुत्तों का झुण्ड। बस यही बचा था देखने को और चूरना ने बाहर जाने से पहले ये भी दिखा दिया। भाई वाह, मज़ा आ गया।
जंगली कुत्तों का झुण्ड
जंगली कुत्तों का झुण्ड
यादों को समेटे निकल पड़े घरोंदो की और : हम सब बहोत ही खुश थे की चूरना ने हमे बिलकुल भी निराश नहीं किया और हमे जितना सोचा था उससे कही ज़्यादा मिला। ना चाहते हुए भी हमने चूरना को अलविदा बोला और निकल पड़े वापसी के सफर पे।
छप्पड़ फाड़ ट्रिप : कहते हैं न जब ऊपर वाला देता है तो छप्पड़ फाड़ के देता है!!! कुछ ऐसा ही हमारे साथ हो रहा था। एक के बाद एक सरप्राइज ख़तम ही नहीं हो रहे थे। हम चूरना से इंदौर का आधा सफर तय कर चुके थे और सलकनपुर पहुंचने ही वाले थे की अचानक मेरी नज़र रोड के किनारे लगे एक बोर्ड पर पड़ी "टपकेश्वर महादेव जाने का रास्ता"!!! इसे पढ़ते ही मेरे दिमाग की घंटी बज गई, ये तो वही जगह थी जिसे में कई सालों से खोज रहा था और किताबों में वर्णन के अनुसार ये जगह बहोत ही गहरे जंगलों में छुपी हुई एक गुफा थी जिसका मुँह किसी मगरमच्छ के सामान था और उसमे एक स्वयंभू शिवलिंग था जिसका अभिषेक पहाड़ों से रिसते हुए पानी से निरन्तर होता रहता था।
मैंने तुरंत ही गाडी घुमा ली और निकल पड़ा मेरी वर्षों की खोज को पूरा करने। जैसा मैंने पढ़ा था रास्ता बहोत ही घाना, दुर्गम और पथरीला था। छोटी गाड़ियाँ तो शुरुवात में ही किसी पत्थर से टकराकर खड़ी हो जाएँ। जैसे तैसे धीरे धीरे में अपनी गाडी को रस्ते के पत्थरों से बचते हुए आगे ले गया। करीब ३ किलोमीटर सुखी नदी में गोल पत्थरों के ऊपर गाडी चलने के बाद में एक पहाड़ की तली में पहुंचा और वहां से गाडी से आगे जाना संभव नहीं था। हम सभी लोग पैदल उस पहाड़ की चढ़ाई करने लगे। चूँकि चढ़ाई सीधी थी और सर पे कड़क धुप थी इसलिए कुछ लोग वापस आधे रस्ते से मुड़ गए। आगे बढ़ते हुए हमे बहोत दूर ऊँची पहाड़ी पर एक लाल ध्वजा दिखी, बस वही जाना था हमको। जैसे तैसे हम उस गुफा पर पहुंचे, वर्णन के विपरीत अब गुफा पहले जैसी प्राकृतिक नहीं रही थी और स्थानीय लोगों ने उस गुफा की मरम्मत के लिए सीमेंट के पिलर और दीवारे बना दी थी। परन्तु इन सब के अलावा अब भी इतने सूखे में उस गुफा में चट्टानों में से पानी रिस कर शिव लिंग का निरंतर अभिषेक कर रहे थे और आगे जाकर ये पानी एक छोटे से कुंड में एकत्रित हो रहा था। प्यासा होने के कारन मैंने एक घूंट पानी उस कुंड में से पिया और यकीं मानिये वो पानी अमृत की तरह शीतल और मीठा था। उसे पीकर मेरी सारी थकान उतर गई। कुछ देर वहां से खूबसूरत नज़ारे देखने के बाद हम लोग वापस निचे उतर आये।
टपकेश्वर महादेव गुफा का रास्ता
टपकेश्वर महादेव गुफा का रास्ता
टपकेश्वर महादेव गुफा का रास्ता
टपकेश्वर महादेव गुफा
टपकेश्वर महादेव गुफा
टपकेश्वर महादेव गुफा
इस एक ट्रिप ने हमे बहोत कुछ दिया और में चाहता हूँ की "इससे पहले की प्रकृति का और विनाश हो, आप सब भी इस खूबसूरत जगह को देखे और हमारे हरित गृह को बचाने की कोशिश करें।" इस यात्रा से जुडी बाकी जानकारियां निचे दी गई है, किसी भी अन्य सहायता के लिए आप मुझे मेरे मोबाइल नंबर 8989463577 पे संपर्क कर सकते हैं।
नोट : दूर से लिए गए फोटोज के लिए क्षमा करें क्योकि कैमरा में घर भूल गया था और मेरा साथ
Samsung S9 Plus ने दिया।
जगह : सतपुरा टाइगर रिज़र्व, चूरना
कैसे जाएँ : इंदौर - नेमावर रोड - कन्नोद - खातेगांव - नसरुल्लागंज - रेहटी - बुदनी - होशंगाबाद - इटारसी - भौरा - चूरना
साधन : चूरना जाने के लिए खुदकी गाडी जरुरी है एवं गाडी high ground clearance की होना चाहिए।
कहा रुकें : चूरना रेस्ट हाउस
कैसे बुक करें : चूरना रेस्ट हाउस की बुकिंग के लिए आप होशंगाबाद स्थित सतपुरा टाइगर रिज़र्व के ऑफिस में फ़ोन करके बुकिंग करवा सकते हैं जिसका नंबर है 07574 254394
चूरना में क्या करें : मुख्यतः चूरना में लोग जिप्सी सफारी के लिए ही जाते हैं और साथ ही प्रकृति का आनंद भी लेते हैं।
भोजन व्यवस्था : चूरना में fixed menu के आधार पर शाकाहारी खाना और नाश्ता वन विभाग के द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है।
अन्य जानकारी :
१. चूरना में मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता है परन्तु जंगल में जिप्सी सफारी के दौरान कुछ जगह ऐसी हैं जहा पर आपको मोबाइल नेटवर्क मिल जाता है।
२. अपने साथ ओडोमॉस या मच्छर अगरबत्ती लेकर जाएँ।
३. कैप, गॉगल, दूरबीन और कैमरा आपके अनुभव को सुखद बनाएंगे।
४. जंगल में इत्र या parfume न लगाएं।
५. अगर आप टीवी या यूट्यूब के आदि हैं तो मोबाइल में पहले से ही यूट्यूब या किसी और ऍप से ऑफलाइन वीडियोस डाउनलोड कर लें। फुर्सत में आपका टाइमपास हो जायेगा।
६. जंगल घना है इसलिए अपने वाहन का सही तरह से सर्विसिंग करवा लें एवं स्पेयर टायर को भी अच्छे से चेक कर लें और अगर tubeless टायर है तो पंचर ठीक करने की किट भी साथ में रखें हवा भरने के पंप सहित।
७. हलके रंग के कपडे पहने जो जंगल से मेल खाएं। भड़कीले रंग के कपड़ो से जानवर व्यथित होते हैं।
८. जंगल में शोर बिलकुल भी न करें और सिर्फ टाइगर की रट ना लगाएं। जंगल में और भी खूबसूरत जानवर हैं, उन्हें भी देखें।