Sunday, 25 April 2021

कोरोना से लड़ने में सहायक प्राकृतिक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर - Fight with Corona with the help of Natural Oxygen Concentrator at you home

 

दोस्तों कोरोना की इस वैश्विक महामारी के समय आज हम सभी ऑक्सीजन का महत्त्व जान रहे हैं। हर तरफ त्राहिमाम मचा हुआ है। कई लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण अपने जीवन से हाथ धो रहे है। लेकिन एक चीज़ जो हमको देखने में आ रही है वो यह की गाँव में इस बीमारी का प्रकोप शहरों की अपेक्षा कुछ कम है। तत्थ्यों पर विचार किया जाये तो सबसे बड़ा कारन गाँवों की हरियाली जान पड़ती है। चूँकि कोरोना फेफड़ो पर असर करता है और गाँव में भरपूर ऑक्सीजन और प्रदुषण कम होने के कारण वहाँ के लोगो के फेफड़े मजबूत और ऑक्सीजन से भरे हुए होते हैं इसलिए कोरोना का प्रकोप वहाँ थोड़ा कम है।

अब अगर हमारी बात की जाये तो हम शहरों में रहते है और रातो-रात शहरों में गाँव की तरह हरियाली तो लायी जा नहीं सकती और ना ही हम गाँव जाकर रह सकते हैं। तो फिर कुल मिला कर एक ही चारा है की हम घर में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर (Oxygen Concentrator) लेकर रख लें और ज़रूरत पड़ने पर इसका उपयोग करें।

लेकिन दोस्तों, मशीनी ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर आपको आस-पास से ऑक्सीजन इकठ्ठा करके ला तो देगा पर ऑक्सीजन बनाएगा नहीं। तो फिर कुछ समय बाद इन कॉन्सेंट्रेटर का उपयोग ज़्यादा होने से हमारे आस-पास की ऑक्सीजन कम होती जाएगी और कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ती जाएगी क्योकि ऑक्सीजन तो पेड़ ही बना सकते हैं और कार्बन भी पेड़ ही सोख सकते हैं। तो फिर क्या किया जाये???

घबराइए मत, मेरे पास इसका एक आसान उपाय है जिससे घर में ऑक्सीजन भी बढ़ेगी और कार्बन भी कम होगी और हवा में मौजूद हानिकारक रसायनों जैसे benzene, Formaldehyde, trichloroethylene, xylene, toluene और ammonia का भी अवशोषण होगा। है ना गज़ब की बात? तो आइये में आपको आज प्राकृतिक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटरस के बारे में जानकारी देता हूँ। आप भी इन्हे अपने घरों में लगाकर मुफ्त में भरपूर ऑक्सीजन ले सकते हैं। 


हम सभी जानते हैं की नासा (NASA) दुनिया का सबसे शीर्ष वैज्ञानिक संसथान में से एक है और आज में आपके साथ बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने जा रहा हूँ जो की नासा के वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत से शोध करके हासिल की है। NASA ने कुछ पौधो की सूचि बनाई है जो की न सिर्फ ऑक्सीजन देते हैं बल्कि वातावरण से हानिकारक तत्वों को भी कम करते हैं। इनमे से कुछ हानिकारक तत्व तो कैंसर के भी कारक होते हैं। देर ना करते हुए मैं आपको इन पौधो के बारे में बताता हूँ जिन्हे आप अपनी पास की नर्सरी से अपने घर में लेकर आ सकते हैं। 

1. Aloe Vera - यह पौधा काफी मशहूर और आसानी से घरों में मिल जाता है। इसे अगर गुणो की खान बोला जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जलने कटने पर इसके पत्ते का रस लगाया जाता है। सौंदर्य प्रसाधनों में त्वचा पे निखार के लिए भी इसका उपयोग होता है। बालों के झड़ने और टूटने से रोकने के लिए भी इसका रास सर पर लगाया जाता है| पेट की बीमारी या दर्द होने पर इसके गूदे का रस बना कर पिने से आराम मिलता है और मोटापा कम करने में भी ये सहायक है।  परन्तु कम ही लोग जानते हैं की एलो वेरा घर में लगाने से ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है और benzene एवं Formaldehyde जैसे हानिकारक तत्वों को भी ये हवा से कम करता है। प्राकृतिक एयर प्यूरीफायर है। पौधा ना मिलने पर आप ऑनलाइन बीज या पौधा भी यहाँ से मंगवा सकते हैं। क्लिक करें। 

2. Areca Palm - यह पौधा भी घर में ऑक्सीजन देने और कार्बन सोखने के अलावा Acetone,Xylene,Toluene और Formaldehyde जैसे हानिकारक तत्व जो की पेट्रोलियम पदार्थ जैसे नेलपॉलिश, पेंट, क्लीन्ज़र आदि से निकलते हैं उनको हवा से अवशोषित करके वातावरण स्वच्छ करता है और इसलिए वास्तु में भी इसका महत्त्व है। पौधा ना मिलने पर आप ऑनलाइन बीज या पौधा भी यहाँ से मंगवा सकते हैं। क्लिक करें। 

3. Gerbera Jamesonii - Barberton Daisy - खूबसूरत होने के साथ-साथ ये पौधा formaldehyde, benzene और trichloroethylene जैसे हानिकारक तत्वों को काम करके घर का माहौल खुशनुमा बनाता है और यह भी प्राकृतिक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर और purifier है। पौधा ना मिलने पर आप ऑनलाइन बीज या पौधा भी यहाँ से मंगवा सकते हैं। क्लिक करें। 


4. Devil's Ivy - Money Plant - इस पौधे को तो हर कोई जनता है, घर में पानी में या फिर मिटटी में बहोत ही आसानी से उगाया जाता है और NASA ने इसे भी अपनी लिस्ट में जगह दी है। भरपूर ऑक्सीजन देने वाला और जल्दी बढ़ने वाला ये पौधा घर आँगन की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है और हवा को शुद्ध करता है वो अलग। पौधा ना मिलने पर आप ऑनलाइन बीज या पौधा भी यहाँ से मंगवा सकते हैं। क्लिक करें। 

5. Flamingo Lily - Anthurium Red - Anthurium Andraeanum - देखने में बहोत ही खूबसूरत ये पौधा आपके बैडरूम की शान हो सकता है। कम रौशनी में भी जी लेने वाला ये पौधा अगर आप बैडरूम में लगाते हैं तो सोते वक़्त आपको ये भरपूर ऑक्सीजन देगा जिससे आप हर सुबह तरोताज़ा होकर उठेंगे। इसके अलावा ये हवा से formaldehyde, toluene और xylene को भी साफ़ करेंगे और आपको स्वस्थ जीवन देंगे। पौधा ना मिलने पर आप ऑनलाइन बीज या पौधा भी यहाँ से मंगवा सकते हैं। क्लिक करें। 
दोस्तों ऊपर लिखे पौधो के अलावा भी कई सारे पौधे हैं जो की लिस्ट में शामिल हैं और जिनके नाम मैं निचे दे रहा हूँ। तो आप भी इस महामारी के समय में ये प्राकृतिक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर अपने घर में लगाइये और मुफ्त में अपनी सेहत बढ़ाइए। अगर आपको मेरा ये ब्लॉग अच्छा लगा हो तो कमेंट और सब्सक्राइब करके मेरा उत्साह वर्धन कीजिये। 

आपका अपना 
अंबुज जैन 


NASA के द्वारा शोध की अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर क्लिक करें - https://en.wikipedia.org/wiki/NASA_Clean_Air_Study

Tuesday, 28 July 2020

Grow Leafy Vegetables at Home

Hello Friends, I am back with Corona special blog again. This time I am sharing with you an excellent and modern way to grow vegetables at home without soil and much hassle. We all accept that another lock-down can be enforced any time and we will again struggle for our daily needs. Of course you can store plenty of cereals, pulses and grains but what about vegetables??? You can't store it for long. You need it fresh and healthy. So why not grow it at your home only in very less space!!!



The concept is known as "Hydroponics" and its innovation dates back to 1699 and modern Hydroponics are boon of Israel. In this concept you grow your veggies without soil and you typically require only 10'x5' space at your home/garden. Also the water consumption is 80% low than traditional gardening. Lets see some of the advantages of Hydroponic farming:-
  1. Soil less thus no soil based deceases, less insects, odor less.
  2. Requires less space, approximate 150 plants would require only 10'x5' space.
  3. Fast growth as plants get minerals directly.
  4. No tilling, digging or dirty work.
  5. Less maintenance required.
  6. Running cost is as low as 250/- per month.
  7. Extremely less water required so saving water.
  8. Environment friendly, no wastage.
  9. Since no soil is used thus your crop will be pesticide free and healthy.
  10. You get fresh leafy veggies at your home.
  11. You are the owner of your own home farm where you can do experiments with different crops.
  12. On call support from experts are available to deal with any difficulties.
But there are few disadvantage as well:-
  1. One time setup cost is little bit high but it is investment for years.
  2. Growing big vegetables like pumpkin, bottle gourd etc requires expertise and change in overall setup.
  3. For better results you need to keep the Hydroponic system in shade or net.
  4. The quantity of nutrient should be exactly as per plant requirement. Higher or lower quantify will damage the crop but this rule applies on all farming systems.
  5. If you have relative hard/soft water, you need to use softener/hardener for better growth.
How it works : The whole system is based on PVC pipes where hole is made on the upper part of the pipe and net pot is kept on it with media (clay pebbles, coir coinsperlite etc)  and sapling. The water is kept in container with pump and minerals dissolved in it. Once the water with minerals are pumped inside the PVC pipes, the water gets circulated and plant roots absorbs the nutrient directly. The remaining water comes back in container and re-pumped in PVC pipes thus you require extremely less water because each drop of the water is either consumed by plant or drains back in the container.  


Essential Components to start : You need following components to start Hydroponic farming at home:-
  1. Hydroponic System (You can buy it here) or call me on 7000870513 for half price in Indore. Alternatively you can use following diagram to make your own easy Hydroponic system at home.
  2. If you make your own Hydroponic system than you need separate Netpots, Seeds, Clay Pebbles, Nutrients, Seedling Tray & Coir coins to start with. (You can buy a single starter kit here which contains essential items to start with).


Lets plant something : Since now you must have understood the overall working of Hydroponics, lets go ahead with plantation of some green leafy delicious veggies. Follow below steps to establish your own hydroponic kitchen garden:-

STEP 1 : Take any seed as per "seed sowing calendar" and put in water overnight. Next day take a coir coin and put the seed in and sprinkle some water. Now keep it in seedling tray and wait till the seed get germinated. Make sure you don't make it wet, just keep it moist.



STEP 2 : Once the seed get germinated and sapling grows out, transfer the sapling along with coir coin in a netpot and fill it with clay pebbles. After this put the netpot on Hydroponic system.


STEP 3 : Now bring the nutrients and make a quantity relevant to your Hydroponic system. Typically it is taking 100 litres water which will be sufficient for 1 month for a 50 planter hydroponic system. Mix the required quantify of nutrients in that water as per instructions given with nutrient solution and put it in Hydroponic water container. Keep pH and tds level as per values mentioned. You can use pH meter & TDS meter for measuring it. 


STEP 4 : Lets start the Hydroponic system and start the pump so that it will circulate the minerals for the plants to grow. Do not forget to cover the Hydroponic system by green/white net so that it doesn't get direct sunlight and burn the plants.


STEP 5 : Now its time to wait for few weeks to grow your vegetables. Show your amazing kitchen garden to others and start consuming your crops and make delicious, farm fresh, pesticide free and healthy cuisines at your home.



Troubleshooting : Sometime you can encounter slow plant growth or less green color on leafs. This is indication of malnutrition. Don't worry, you can quickly consult with your service provider on phone call and they will be able to help you out. 

Friends the concept of Hydroponics is relatively new for most of us but this is the future of farming. The subject is very vast and I wanted to keep my blog short and simple. For further details you can contact me with specific questions and I will be ready to help you.

Thank You

Veg Seed sowing suggestions for India



Those who want to start home kitchen or hydroponic system at home, this blog can help them choose the vegetable seeds as per the month of the year. 

Nature has chosen different seasons for different type of crops with some reason. The crops are used as per the climatic condition and it certainly gives health benefits of the consumer. So this is important for us to choose the crops as per their relevant season. 

The below calendar is specifically made for kitchen garden and hydroponic systems. Thus crops which are not feasible to them is not listed here. 


Thursday, 16 July 2020

Become Healthy during Lockdown with Wheatgrass aka Green Blood


HD wallpaper: macro, grass, wheat grass, dew drops, green, green ...

Friends due to this pandemic, like all others I am also stuck in the home and not able to go anywhere to show you new places. So I decided to share with you some tips to be healthy and help yourself and your family boost immunity to fight against Corona.

Wheatgrass shots Sip Juice Bar February 23, 2012 2 | Flickr

Today I will share with you a simple step to grow wheat-grass (also known as Green Blood) at your home and consume it in liquid form.  Most of you must be aware that wheat-grass juice is a super-food and have following health benefits: -
  • Its super-food with iron, calcium, enzymes, vitamins etc.
  • It can eliminate toxins from your body
  • Help digestion
  • Boost metabolism
  • Lower your cholesterol
  • Boost your immune system
  • Energies you
  • Lower your blood pressure
  • Help with diabetes
  • Relieve anxiety
You will be amazed to know that wheat-grass powder is famous and being sold for more than Rs. 3500/kg (Click here). Best news is you can grow it at home without any hassle with few bucks only.

File:Grüner Tee, Matcha1.jpg - Wikimedia Commons

So lets start with some little preparations to grow this Green Blood at your kitchen garden!

Things required: - 
  • A flat base tray of any shape with 3/4 inches depth. If you don’t have, you can buy it here.
Kuber Industries Plastic Stationary Tray (CTKTC76)
  • Normal soil
File:Soil.jpg - Wikimedia Commons
  • For best results you can use Coco-peat on the place of soil! It is cheap, hassle free, dust free, non-stinking, requires less water and insect free. Buy it here.
Coco peat block - 900 g
  • Wheat grain (You will find it in your kitchen). If you don’t buy grain and take wheat flour directly then you need to go to any grain merchant and ask for 1 KG wheat grain which will cost you around 25-30 rupees only.
Wheat Grain Agriculture - Free photo on Pixabay
  • Normal water.

Raise your Wheat-grass in 5 easy steps: - 
  • Soak the wheat grain (Gehu) seeds for overnight.
  • Take your flat tray and fill it with soil or coco-peat 3/4th level.
Step by step guide on how to grow microgreens with pictures ...
  • Spread the seeds evenly on it and cover the seeds with the thin layer of soil or coco-peat. sprinkle some water to make it medium moist but not completely wet and put the tray in some shady area. Keep checking the moisture level of the soil and keep it moist but not waterlogged.
Why Wheatgrass Is A Super-Powerful Health Food
  • After 3-4 days tiny seedlings will start growing. At this stage put the tray in an area where it can receive partial sunlight. Keep it moist all the time and do not let it dry.
How To Grow WheatGrass – Growing Instructions with Pictures ...
  • Within 6-8 days, it will grow around 15-20 cm and this is the time when you can harvest the wheat-grass. Trim the wheat-grass with the help of a scissor just above the surface and it is ready for detoxify your body. The same wheat-grass can be harvested from another single cycle and after that you need to grow new seedlings with wheat grains.
File:Wheatgrass (Triticum aestivum) 2.jpg - Wikimedia Commons

Now make wheat-grass juice and start your day with simple juice or smoothie. Recommended quantity for consumption by adult in a day is anywhere from 1 to 4 ounces (oz.), or about 2 shots.

green smoothie in the blender | Stacy Spensley | Flickr

Possible Side effects: In the starting some people can experience nausea, headache or constipation which will fade within two weeks. This is because your body is not habitual. Try starting with small quantity and gradually increase it to recommended dose. Drinking an 8 oz. cup of water after taking wheat-grass can help reduce your risk for side effects. Pregnant or breastfeeding women should avoid it.

Have a healthy life...











Friday, 6 March 2020

Nature's own ABODE - CHURNA - Satpura Tiger Reserve


सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए से अनसुलझे-अनमने से जंगल 

दोस्तों,

ये शायद मेरी ज़िन्दगी का अब तक का सबसे यादगार सफर होगा। हम में से अधिकतर लोग किसी घने राष्ट्रीय उद्यान के जंगल में या बाघों के प्राकृतिक निवास में रहने के सपने तो देखते हैं पर हमे समझ नहीं आता की आखिर हम किस जगह जाएँ जहाँ खुले आसमान के निचे घने जंगलों में एक छोटा सा परिसर हो जिसमे घांस और बांस से बने घरोंदे हो और पुराने ज़माने के कवेलू वाले कमरों की खिड़कियों में से झाँकने पर पक्षियों की अटखेलियाँ और वन्यजीवों का स्वच्छंद विचरण मन मोह ले। कुछ ऐसी ही जगह मैंने अपने लिए कई सालों से खोज राखी थी पर वहां जाने का मौका मुझे पिछले हफ्ते ही मिला।


मैं बात कर रहा हूँ सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के कोर एरिया "चूरना" की। जी हाँ ये वही सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व है जिसकी कविता हम बचपन में बाल-भारती में पढ़ते थे। "सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए से अनसुलझे-अनमने से जंगल। सतपुड़ा अपने आप में प्राकृतिक रूप से बहोत ही समृद्ध और सौंदर्य से परिपूर्ण है और "चूरना" सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के कोर एरिया में स्थित है। किसी भी टाइगर रिज़र्व का कोर एरिया वह एरिया होता है जिसमे वन्यजीवों की संख्या भरपूर होती है और वन्यजीवों को उनके प्राकृतवास में देखा जा सकता है। वन्यजीवों की सुरक्षा व एकांतता को देखते हुए कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी आ चूका है जिसमे कोर एरिया का केवल २०% हिस्सा ही पर्यटन के लिया खोला जा सकता है। दुर्भाग्य से चूरना भी उसी कोर एरिया के अंतर्गत आता है और ऐसा माना जा रहा है की कुछ ही महीनो में चूरना को भी  पर्यटन के लिए बंद कर दिया जायेगा और पर्यटक वहां रात्रि विश्राम नहीं कर पाएंगे। खैर हमारी किस्मत अच्छी थी जो हमने समय रहते यहाँ जाने और रहने का प्रोग्राम बना लिया। 

हमारी यात्रा सुबह के ५ बजे इंदौर से शुरू हुई (चूरना में कैसे जाएँ, कहा रुकें, बुकिंग कैसे करवाएं, रहने और घूमने का खर्चा, परमिट इत्यादि की जानकारी इस ब्लॉग के अंत में दी गई है)। हम कुल 6 लोग थे, मैं, अंकुर, पराग, नेहा, विनोद और पूजा। घूमते-फिरते रास्तों के नज़ारे देखते हुए हम लोग करीब २ बजे चूरना के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। चूरना के प्रवेश द्वार से वन विश्राम गृह की दुरी करीब ३५ किलोमीटर है। यह दुरी आपको अपनी खुदकी गाडी से तय करनी होती है और पूरा रास्ता सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के घने जंगलों में से होकर गुज़रता है। यह ३५ किलोमीटर की यात्रा अपने आप में ही टाइगर सफारी की तरह होती है और आपको रास्ते में लगभग सभी जंगली जानवर देखने को मिल जाते हैं या फिर उनके निशान मिल जाते हैं। प्रवेश द्वार से अंदर आते ही अपने वाहन से उतरना या फिर बिच रास्ते में रोक कर वन्यजीवों को देखने की कोशिश करना दण्डनीय अपराध है और जंगल घूमने के लिए वन विश्राम गृह पहुंच कर अलग से जिप्सी सफारी की जा सकती है।

मंजिल से पहले राहों का मज़ा भी ले लिया जाये 
सफर में फलों का स्वाद कुछ बढ़ सा जाता है 
एक पोज़ हो जाये 

करीब १ घंटे में हम चूरना पहुंचे, आशा के अनुरूप पहली नज़र में ही चूरना ने हमारा मन मोह लिया। चारो तरफ हरियाली, प्राकृतिक रूप से बने हुए कुटीर, ब्रिटिश काल का मनमोहक वन विश्राम गृह, खूबसूरत मैदान, झूले, ऊँचे-ऊँचे वृक्ष, चिड़ियों की चहचहाहट और बाड़ की दूसरी तरफ उन्मुक्त घूमते हुए हिरणों का झुण्ड हमे यकीन दिला रहा था की ये यात्रा हमारी अब तक की सबसे सुखद यात्रा होने वाली थी। बहरहाल हम लोग फटाफट अपने रूम में पहुंचे और थोड़ा फ्रेश होने के बाद आसपास का वातावरण देखने लगे। हमारी सारी शाम आसपास विचरते हुए जानवरों को देखने और दूर कही से शाकाहारी जानवरों की चेतावनी वाली पुकारों को सुनते हुए बीती। हम बस यही  सोच रहे थे काश हमे विश्राम गृह से बाहर निकलने की अनुमति मिल जाये और हम चेतावनी वाली पुकारो की तरफ जाकर आपेक्षित शिकारी जानवर (शायद बाघ) को देख लें। खैर हमारी सारी रात अगले दिन सुबह जिप्सी सफारी पर जाने के रोमांच में बीती।

 सतपुरा टाइगर रिज़र्व के अंदर चूरना रेस्ट हाउस पहुँचने का मार्ग 
चूरना के मार्ग पर मिलने वाली नदी जिससे जंगली जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं 
इन्ही राहों से शेर और शेर दिल गुज़रते हैं 
हमारी ओर कोतुहल से देखती एक नीलगाय 
पानी के तालाब के पास प्यास बुझाने आया हुआ नर सांभर हिरन 
इस नदी में गर्मियों में बाघ तरोताज़ा होने के लिए आते हैं 
 चूरना फारेस्ट रेस्ट हाउस का खूबसूरत परिसर 
 चूरना फारेस्ट रेस्ट हाउस का खूबसूरत परिसर 
 चूरना फारेस्ट रेस्ट हाउस का खूबसूरत परिसर  
चूरना फारेस्ट रेस्ट हाउस का खूबसूरत परिसर 

भालू से मुलाकात : सुबह ठीक ५:३० बजे मुर्गे ने बांग दी। मैं अपने रूम से बहार आया तो मेरे साथी पहले से ही चाय की जुगाड़ में किचन के पास खड़े थे। धुंद से भरी अल्हड सुबह चाय की चुस्की लेने के बाद ठीक ६:३० पर हम खुली जिप्सी से जंगल की ओर निकल पड़े। मन में विश्वास था की चूरना जैसी जगह पर जंगली जानवर तो बहोत दिखेंगे और हुआ भी वही। कुछ दूर निकलने पर ही अचानक सड़क के किनारे हमे काले फर की बड़ी सी बॉल जैसी आकृति दिखी, हमारा स्वागत सतपुड़ा में मिलने वाले काले रंग के रीछ (भालू) ने किया। अपने खाने में मगन भालू ने जैसे ही हमे देखा, वो दौड़ कर जंगल में कही गुम हो गया।

काले फार की बॉल जैसा भालू जंगल की ओर भागते हुए
सुबह की जिप्सी सफारी 
 भारतीय गौर का झुण्ड 
 नर सांभर हिरन 
 नर सांभर हिरन

बाघ का पंजा : खुली जिप्सी में घूमते वक़्त ड्राइवर की नज़र मार्ग पर किसी वन्य प्राणी के चिन्ह पर पड़ी। ध्यान से देखने पर समझ आया की ये तो बहोत ही भीमकाय बाघ के पंजों के निशान हैं जो की कुछ ही समय पहले के हैं। जंगल में बाघ की मौजूदगी का बोध होना अपने आप में अलग ही एहसास है। रोंगटे खड़े हो जाते हैं ये सोच कर की खुली जिप्सी में अगर बाघ सामने आ जाये तो हम क्या करेंगे? खैर जो करना हो वो ही करेगा। हमने तुरंत उन पंजों के निशानों का पीछा करना शुरू कर दिया। लगभग ३ किलोमीटर तक उन पंजों का पीछा करने के बाद पंजों के निशान हमें चूरना रेंज की सीमा तक ले गए एवं आगे मढ़ई रेंज की ओर जाने लगे। चूँकि हमारा परमिट चूरना रेंज का ही था और हम किसी और रेंज में प्रवेश नहीं कर सकते थे अतः हम निराश मन से वापस मुड़ गए और खुदको कोसने लगे काश हम थोड़ा और जल्दी आ जाते तो बाघ हमे दिख सकता था।

 बड़े नर बाघ के पंजे 
बाघ इस ओर आगे मढ़ई की तरफ चला गया

जंगल का कानून : या तो भाग कर जान बचाओ या ताकतवर का निवाला बन जाओ, यही है जंगल का कानून। बाघ के पंजों का पीछा छोड़ निराश मन से वापस आते हुए अचानक ही हमारा गाइड चिल्लाया "गाडी रोको सामने तेंदुआ है"| डर और रोमांच की लहर पुरे शरीर में दौड़ गई जब कुछ ही दुरी पर चट्टानों के बिच हमे एक तेंदुआ दिखा। बहोत ही खूबसूरत और चमकदार फर वाली इस बड़ी बिल्ली को देखना बाघ को देखने से भी ज़्यादा मुश्किल होता है और मज़े की बात ये की अपने स्वाभाव के विपरीत वो तेंदुआ हमे देख कर कहीं भागा नहीं और आराम से चट्टान पे बैठ गया। में उसे जी भर के देख ही रहा था की अचानक मेरे मित्र पराग अमोलिक ने मुझे बताया की वहा एक और तेंदुआ है और इतने में दूसरे मित्र विनोद की पत्नी पूजा बोली अरे देखो-देखो तेंदुआ के पास कोई शिकार है और वो उसे खा रहा है। हमे अपनी आँखों पे भरोसा ही नहीं हुआ, एकाकी जीवन बिताने वाले और दुर्लभ ही दिखने वाला तेंदुआ और वो भी एक नहीं दो-दो और ऊपर से शिकार को खाते हुए, हे ईश्वर ये नज़ारा तो बहोत ही दुर्लभ था और अगर हमारे में से किसी के पास भी कैमरा होता तो वो वीडियो क्लिप अनमोल होती जैसी डिस्कवरी और एनिमल प्लेनेट में फिल्मायी जाती है। हम पूरी तरह से शांत बैठे थे और तेंदुए हमारी मौजूदगी से बेअसर थे। ध्यान से देखने पर पता चला की वो एक चीतल हिरन को खा रहे थे जिसकी किस्मत में उसका अंत लिखा था। जंगल में कमज़ोर जानवर ताकतवर जानवरों का निवाला बनते हैं और इसी तरह से प्रकृति का संतुलन बना रहता है। हमारे और तेंदुए में कितनी दुरी थी ये आप इस बात से पता लगा सकते हैं की उसके पैने दांत जब हिरन की हड्डियों को चबा रहे थे तो उसकी आवाज़ हमारे कानो में साफ़ सुनाई दे रही थी। आगे बढ़ने से पहले लगभग डेढ़ घंटे तक हम वहां रुके और बारी-बारी से दोनों तेंदुओं को शिकार खाते हुए देखा। किस्मत पे भरोसा नहीं हो रहा था हमने २ तेंदुए देखे वो भी लगभग डेढ़ घंटे तक।

 दो तेंदुए शिकार का मज़ा लेते हुए 
 दो तेंदुए शिकार का मज़ा लेते हुए 
शिकार खाने के बाद आराम करते हुए 

मालाबार जायंट स्क्वेरेल से मुलकात : गिलहरियाँ तो मुझे बचपन से ही पसंद थी, और जब बात हो मालाबार जायंट स्क्वेरेल की तो उसकी तो बात ही कुछ और है। चमकीला नारंगी, भूरा और काले रंग का फर और उसपे बड़ी बड़ी खूबसूरत आँखे और कान उठा कर किसी शरारती बच्चे की तरह फुदक-फुदक कर चलना हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। सुबह की सफारी से आने के बाद हम लोग आम के पेड़ के निचे बैठे हुए थे और तभी ना जाने कहा से २ प्यारी सी गिलहरियां फुदकती हुई हमारे पास आ गई। पहले तो हमे भरोसा ही नहीं हुआ की इतना शर्मीला जीव हमारे इतने पास कैसे आ गया पर फिर समझ आया शायद वन विभाग के कर्मचारियों से घुल मिल कर इनका व्यव्हार ऐसा हो गया होगा। बहरहाल हमने इनके साथ खूब सरे फोटोज लिए और इनकी अटखेलियों का खूब आनंद लिया।

श्रीमान मालाबार जायंट स्क्विरेल्ल से गहन मुद्दे पे चर्चा करते हुए 

बहोत ही प्यारी है 
चमकीला फर 
आप यहाँ आये किसलिए?

साढ़े छः करोड़ साल पुराने प्रागेतिहासिक जीव : वक़्त हो चला था दोपहर की सफारी का। हमारे जिप्सी ड्राइवर ने बताया की वो हमे पुरानी गिट्टी खदान दिखाने ले जायेगा जहा पर गांव को विस्थापित करने से पहले गिट्टी की खुदाई की जाती थी और अब सिर्फ बड़े बड़े गड्ढे हैं और उसमे पानी के तालाब बन गए है और अक्सर बाघ गर्मी से निजात पाने के लिए वहाँ आता है। फरवरी का माह था तो गर्मी तो लाजमी थी इसलिए हम भी टोपी लगा कर सफारी पर निकल गए। तालाब के पास पहुंच कर हर कोई बाज की निगाहों से तालाब को देख रहा था। तालाब के आस-पास काफी सारे सांभर हिरन बैठे हुए थे पर कोई भी तालाब के अंदर नहीं जा रहा था। काफी देर तक आँखे गड़ाने के बावजूद हमे कुछ भी नहीं दिख रहा था। हमारी बेचैनी को भाप कर जिप्सी ड्राइवर जिसे हम काका बोलने लगे थे वो बोलै "साहब वो देखिये उस पेड़ के निचे मगरमच्छ बैठा हुआ है, बड़ा ही आलसी और निकम्मा है इतनी धुप में भी बिना हिले पड़ा हुआ है।" उनका इतना बोलना हुआ की हम सब भौचक्के से उस मगर को देखने लगे और सोचने लगे की हमे इतना बड़ा मगरमच्छ सामने बैठे हुए दिखा ही नहीं !!! अगर हम जंगल में कभी पैदल चल रहे होते और इसी तरह मगर अपने वातावरण में घुल-मिल के बैठा होता तो हमे दीखता ही नहीं और हो सकता है हिंदी फिल्मों की तरह हमारा भी शिकार हो जाता। बाप रे बहोत ही बुरा ख्याल था। जंगल खतरनाक होते है और हमे उनका सम्मान करना चाहिए और कभी भी अनजान जंगल में बिना किसी मार्गदर्शक के नहीं जाना चाहिए।

 मगरमच्छ धुप सेकते हुए 
हमे देख कर मगर इस कुंड में अंदर छुप गया

स्याह काली अँधेरी रात और वो अज्ञात : दिन भर घूमने के बाद वक़्त था आराम करने का। हम सोने ही गए थे की अचानक जंगल जाग उठा। हम सभी लोग बाहर आकर देखने लगे की जंगल में हो क्या रहा है। बाहर निकलते ही हमने देखा की सारा जंगल स्याह काले अँधेरे में डूबा हुआ था। किसी ने बताया की आज अमावस्या की रात है। ये सुनते ही मुझे गाँव के लोगो की बात याद आई की अमावस्या की रात गाँव के लोग जल्दी सो जाते हैं और रात में बाहर नहीं निकलते हैं क्योकि उनका मानना होता है की जंगल में काली शक्तियों का वास होता है और अमावस्या की रात वो चरम पर होती है। जंगल से कुछ अज्ञात और रहस्य्मयी आवाज़ें आने से और अजीब सी बेचैनी होने से हमने वापस रूम में जाने का फैसला किया। वैसे भी हमारा रूम जंगल के बिलकुल करीब था और जंगल और हमारे बिच सिर्फ ४ फ़ीट की तार की बाड़ थी।

 चूरना रेस्ट हाउस परिसर 
 हमारे और जंगल के घने अँधेरे के दरमियान सिर्फ वो चिराग है जो हमे यहाँ और उसे वहाँ रोके हुए है 
चिरागों की रौशनी जरा मद्धम ही रहने दो, अँधेरा सितारों की जगमगाहट दिखाता है। 
चाँद की गैरमौजूदगी ने लाखों तारों को टिमटिमाने का मौका दे दिया 

रगो में रोमांच की लहर : हमारे तीसरे और अंतिम दिन हम सुबह जल्दी उठ गए क्योकि इंदौर जल्दी निकलना था। बाहर खड़े होकर हम बात कर ही रहे थे की अचानक सांभर हिरन की चीत्कार सुनी। मैं तुरंत समझ गया हो न हो सांभर ने कोई शिकारी जानवर देखा है। हम सब तुरंत दौड़ कर चीख की दिशा में दौड़ पड़े और फारेस्ट रेस्ट हाउस की बाउंड्री के वहां कटीले तार्रों के पास खड़े हो गए। हम सांभर हिरन को देखने लगे और वो जिस दिशा में देख कर चीख रहे थे उस तरफ कुछ देर ध्यान से देखने के बाद हमारी आँखे फटी रह गयी। रेस्ट हाउस से करीब 100 मीटर की दुरी पर एक हष्ट-पुष्ट नर बाघ रोड के किनारे जंगल की तरफ चल रहा था। खून जम सा गया जब देखा की रेस्ट हाउस के इतने नज़दीक एक भीमकाय बाघ घूम रहा है। मज़े की बात ये थी की २ दिन जंगल घूमने के बावजूद बाघ ना दिखने पर हम जितना निराश हो रहे थे आखरी दिन बाघ खुद चलकर हमे अपनी झलक दिखने आया। वाह-वाह चूरना आपको कभी निराश नहीं करता बस आप जंगल के इशारे ठीक से समझ सकें तो।
इसी दरवाज़े से बाहर बाघ दिखा हमे 
 चूरना रेस्ट हाउस परिसर 
 चीतल का झुण्ड 
 चीतल का झुण्ड 

 चूरना का खूबसूरत परिसर 
चूरना का खूबसूरत परिसर

एक और तोहफा : एक ट्रिप में तेंदुए, बाघ, मगरमच्छ, भालू, जायंट स्क्वेरेल और लगभग सभी शाकाहारी जीवों को देख लेने वाले हम बहोत ही गिने चुने भाग्यशाली लोगों में से थे। रेस्ट हाउस से इंदौर को रवाना होते हुए हम सोच रहे थे की ये ट्रिप कितनी ज़्यादा सफल रही। जितना सोचा नहीं था उससे ज़्यादा दिया हमे चूरना ने। सोचते-सोचते हम चूरना के निकास द्वार से मात्र 50 मीटर दूर ही थे की हमे जंगल के एक और दुर्लभ और आकर्षक जीव के दर्शन हो गए। ये था जंगली कुत्तों का झुण्ड। बस यही बचा था देखने को और चूरना ने बाहर जाने से पहले ये भी दिखा दिया। भाई वाह, मज़ा आ गया।

 जंगली कुत्तों का झुण्ड 
जंगली कुत्तों का झुण्ड

यादों को समेटे निकल पड़े घरोंदो की और : हम सब बहोत ही खुश थे की चूरना ने हमे बिलकुल भी निराश नहीं किया और हमे जितना सोचा था उससे कही ज़्यादा मिला। ना चाहते हुए भी हमने चूरना को अलविदा बोला और निकल पड़े वापसी के सफर पे।





छप्पड़ फाड़ ट्रिप : कहते हैं न जब ऊपर वाला देता है तो छप्पड़ फाड़ के देता है!!! कुछ ऐसा ही हमारे साथ हो रहा था। एक के बाद एक सरप्राइज ख़तम ही नहीं हो रहे थे। हम चूरना से इंदौर का आधा सफर तय कर चुके थे और सलकनपुर पहुंचने ही वाले थे की अचानक मेरी नज़र रोड के किनारे लगे एक बोर्ड पर पड़ी "टपकेश्वर महादेव जाने का रास्ता"!!! इसे पढ़ते ही मेरे दिमाग की घंटी बज गई, ये तो वही जगह थी जिसे में कई सालों से खोज रहा था और किताबों में वर्णन के अनुसार ये जगह बहोत ही गहरे जंगलों में छुपी हुई एक गुफा थी जिसका मुँह किसी मगरमच्छ के सामान था और उसमे एक स्वयंभू शिवलिंग था जिसका अभिषेक पहाड़ों से रिसते हुए पानी से निरन्तर होता रहता था।

मैंने तुरंत ही गाडी घुमा ली और निकल पड़ा मेरी वर्षों की खोज को पूरा करने। जैसा मैंने पढ़ा था रास्ता बहोत ही घाना, दुर्गम और पथरीला था। छोटी गाड़ियाँ तो शुरुवात में ही किसी पत्थर से टकराकर खड़ी हो जाएँ। जैसे तैसे धीरे धीरे में अपनी गाडी को रस्ते के पत्थरों से बचते हुए आगे ले गया। करीब ३ किलोमीटर सुखी नदी में गोल पत्थरों के ऊपर गाडी चलने के बाद में एक पहाड़ की तली में पहुंचा और वहां से गाडी से आगे जाना संभव नहीं था। हम सभी लोग पैदल उस पहाड़ की चढ़ाई करने लगे। चूँकि चढ़ाई सीधी थी और सर पे कड़क धुप थी इसलिए कुछ लोग वापस आधे रस्ते से मुड़ गए। आगे बढ़ते हुए हमे बहोत दूर ऊँची पहाड़ी पर एक लाल ध्वजा दिखी, बस वही जाना था हमको। जैसे तैसे हम उस गुफा पर पहुंचे, वर्णन के विपरीत अब गुफा पहले जैसी प्राकृतिक नहीं रही थी और स्थानीय लोगों ने उस गुफा की मरम्मत के लिए सीमेंट के पिलर और दीवारे बना दी थी। परन्तु इन सब के अलावा अब भी इतने सूखे में उस गुफा में चट्टानों में से पानी रिस कर शिव लिंग का निरंतर अभिषेक कर रहे थे और आगे जाकर ये पानी एक छोटे से कुंड में एकत्रित हो रहा था। प्यासा होने के कारन मैंने एक घूंट पानी उस कुंड में से पिया और यकीं मानिये वो पानी अमृत की तरह शीतल और मीठा था। उसे पीकर मेरी सारी थकान उतर गई। कुछ देर वहां से खूबसूरत नज़ारे देखने के बाद हम लोग वापस निचे उतर आये।

 टपकेश्वर महादेव गुफा का रास्ता 
 टपकेश्वर महादेव गुफा का रास्ता 

 टपकेश्वर महादेव गुफा का रास्ता 
 टपकेश्वर महादेव गुफा 
 टपकेश्वर महादेव गुफा 
टपकेश्वर महादेव गुफा 

इस एक ट्रिप ने हमे बहोत कुछ दिया और में चाहता हूँ की "इससे पहले की प्रकृति का और विनाश हो, आप सब भी इस खूबसूरत जगह को देखे और हमारे हरित गृह को बचाने की कोशिश करें।" इस यात्रा से जुडी बाकी जानकारियां निचे दी गई है, किसी भी अन्य सहायता के लिए आप मुझे मेरे मोबाइल नंबर 8989463577 पे संपर्क कर सकते हैं।

नोट :  दूर से लिए गए फोटोज के लिए क्षमा करें क्योकि कैमरा में घर भूल गया था और मेरा साथ Samsung S9 Plus ने दिया।

जगह : सतपुरा टाइगर रिज़र्व, चूरना
कैसे जाएँ : इंदौर - नेमावर रोड - कन्नोद - खातेगांव - नसरुल्लागंज - रेहटी - बुदनी - होशंगाबाद - इटारसी - भौरा - चूरना
साधन : चूरना जाने के लिए खुदकी गाडी जरुरी है एवं गाडी high ground clearance की होना चाहिए।
कहा रुकें : चूरना रेस्ट हाउस
कैसे बुक करें : चूरना रेस्ट हाउस की बुकिंग के लिए आप होशंगाबाद स्थित सतपुरा टाइगर रिज़र्व के ऑफिस में फ़ोन करके बुकिंग करवा सकते हैं जिसका नंबर है 07574 254394
चूरना में क्या करें : मुख्यतः चूरना में लोग जिप्सी सफारी के लिए ही जाते हैं और साथ ही प्रकृति का आनंद भी लेते हैं।
भोजन व्यवस्था : चूरना में fixed menu के आधार पर शाकाहारी खाना और नाश्ता वन विभाग के द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है।
अन्य जानकारी :
१. चूरना में मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता है परन्तु जंगल में जिप्सी सफारी के दौरान कुछ जगह ऐसी हैं जहा पर आपको मोबाइल नेटवर्क मिल जाता है।
२. अपने साथ ओडोमॉस या मच्छर अगरबत्ती लेकर जाएँ।
३. कैप, गॉगल, दूरबीन और कैमरा आपके अनुभव को सुखद बनाएंगे।
४. जंगल में इत्र या parfume न लगाएं।
५. अगर आप टीवी या यूट्यूब के आदि हैं तो मोबाइल में पहले से ही यूट्यूब या किसी और ऍप से ऑफलाइन वीडियोस डाउनलोड कर लें। फुर्सत में आपका टाइमपास हो जायेगा।
६. जंगल घना है इसलिए अपने वाहन का सही तरह से सर्विसिंग करवा लें एवं स्पेयर टायर को भी अच्छे से चेक कर लें और अगर tubeless टायर है तो पंचर ठीक करने की किट भी साथ में रखें हवा भरने के पंप सहित।
७. हलके रंग के कपडे पहने जो जंगल से मेल खाएं। भड़कीले रंग के कपड़ो से जानवर व्यथित होते हैं।
८. जंगल में शोर बिलकुल भी न करें और सिर्फ टाइगर की रट ना लगाएं। जंगल में और भी खूबसूरत जानवर हैं, उन्हें भी देखें। 

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